श्री समयसार जी/ प्रवचनसार जी के अनुसार चौथे गुणस्थान में शुद्धोपयोग नहीं होता है। श्रावकों को तो पर-द्रव्य के निमित्त से ही धर्मध्यान हो सकता है। फिर स्वयं आत्मा का आत्मा में आत्मध्यान कैसे सम्भव हो सकता है !
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका-समाधान : 44)
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