श्रमण वह आग है, जिनमें ईंधन नहीं होता,
उसका ईंधन, श्रावक होता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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श्रमण का मतलब जो साधु,व़ती होते हैं जो मोक्ष मार्ग पर चलने लगते हैं, जबकि श्रावक उस मार्ग पर चलने में असमर्थ रहते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रमण वह आग है, जिनमें ईंधन नहीं होता है,उसका ईंधन श्रावक होते हैं। अतः श्रमण को मदद देने के लिए श्रावक होना आवश्यक है क्योंकि श्रावक को उनकी वय्यावृती, आहार और विहार की व्यवस्था करना आवश्यक है ताकि ऐसा करने पर श्रावक भी धर्म मार्ग पर अग्रसर होते रहें।
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श्रमण का मतलब जो साधु,व़ती होते हैं जो मोक्ष मार्ग पर चलने लगते हैं, जबकि श्रावक उस मार्ग पर चलने में असमर्थ रहते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रमण वह आग है, जिनमें ईंधन नहीं होता है,उसका ईंधन श्रावक होते हैं। अतः श्रमण को मदद देने के लिए श्रावक होना आवश्यक है क्योंकि श्रावक को उनकी वय्यावृती, आहार और विहार की व्यवस्था करना आवश्यक है ताकि ऐसा करने पर श्रावक भी धर्म मार्ग पर अग्रसर होते रहें।