श्रमण … मैं ही मैं हूँ (क्योंकि स्व में प्रतिष्ठित),
श्रावक …तू ही तू है* ( क्योंकि गुरु/ भगवान की भक्ति की प्रधानता)।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
* दुर्भाग्य(बहुमत), धन दौलत तथा प्रियजनों को ही “तू ही तू है” मानता/ कहता रहता है।
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श्रमण एवं श्रावक को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में श्रावक को अपनी आत्मा को पहिचान करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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श्रमण एवं श्रावक को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में श्रावक को अपनी आत्मा को पहिचान करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।