षटस्थान हानि

कृष्ण आदि लेश्या में षटस्थान हानि –
1. अनंतभाग हानि
2. असंख्यात भाग हानि
3. संख्यात भाग हानि

और और बडी हानि –

4. संख्यात गुणी हानि
5. असंख्यात गुणी हानि
6. अनंत गुणी हानि

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड-गाथा – 293)

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8 Responses

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने षटस्थान हानि का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! उक्त हानि अशुभ लेश्याओं पर निर्भर होती है! अतः जीवन का कल्याण करने के लिए शुभ लेश्याओं का पालन करना परम आवश्यक है!

  2. ‘षटस्थान हानि’, kya sirf ‘कृष्ण आदि लेश्या’ में hi applicable hai ?

    1. Item में ही “आदि” शब्द प्रयोग किया गया है। इसका मतलब कि हर लेश्या में applied है।

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