संयमा-संयम
संयम भाव नहीं, व्रत है।
इसीलिये 5वें गुणस्थान वाले को देशव्रती कहा है।
प्रत्याख्यान कषाय से संयम-भाव नहीं होता है।
कषाय तो कर्मकृत भाव है जो आत्मा के गुणों को रोके रखता है। संयमा-संयम भाव तो अप्रत्याख्यान के न होने से होता है, न कि प्रत्याख्यान के उदय से।
प्रत्याख्यान के उदय से तो सकल-संयम न होने देना है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मुनि महाराज जी का संयमासंयम का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! जीवन में श्रावकों को कमसे कम संयम तो रखना चाहिए ताकि संयमासंयम के भाव बन सकते हैं!
‘प्रत्याख्यान कषाय से संयम-भाव नहीं होता है।’ Is line pe based 2 doubts hain :
1) 1st line me kaha ‘संयम भाव नहीं, व्रत है।’
2) yahan par sanyam ka arth ‘सकल-संयम’ ko le, na ?
यहाँ(item) में संयमासंयम की चर्चा है।
कोई भी संयम भाव नहीं,व्रत होता है। इसलिये उससे निर्जरा होती है।
हाँ, प्रत्याख्यान सकल-संयम को ही नहीं होने देती है।
1) Is line me, ‘ ‘प्रत्याख्यान कषाय से संयम-भाव नहीं होता है,’ Sanyam ka arth ‘सकल-संयम’ ko lena hai, na ?
2) To phir, ‘संयम-भाव’ ka use kyun karte hain ?
Okay.