संयम मार्गणा

पहले व्रत-धारण; उन्हें संभालने के लिए समितियां।
फिर भी कषाय आयेंगी ही; उनके परिहार के लिये दंड-विरति* तथा इंद्रियजय**।

  • व्रत-धारण, जैसे गर्भ-धारण।
  • समिति-पालन, जैसे बच्चे का पालन-पोषण।
  • कषाय-निग्रह, जैसे बच्चे को हानिकारक क्रियाकलाप से रोकना। नियंत्रण रखने पर कषायें कम आती हैं।
    • *मन, वचन, काय की दुष्ट/खोटी प्रवृत्तियों को रोकना/त्यागना।
      **इंद्रियों को जीतना।

    इसी का नाम संयम है → सम् (समीचीन) + यम (हिंसादि पाँच पापों से आजीवन विरति का व्रत)।

    मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड: गाथा- 460)

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6 Responses

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने संयम मार्गणा को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।

  2. अहिंसादि पाँच पापों से ya हिंसादि पाँच पापों से ?

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