सल्लेखना

श्रमण, कषाय सल्लेखना तो हर समय करते रहते हैं। अंत में तो व्यवहार सल्लेखना होती है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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One Response

  1. महाराज जी का कथन है कि साधुओं द्वारा कषाय संल्लेखना हर समय करते हैं जबकि अंत में तो बस व्यवहार सल्लेखना होती है! अतः जीवन में श्रावकों को भी अपनी-अपनी कपियों को कम करते हुए सल्लेखना अथवा समाधिमरण के भाव रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!

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