अन्य मतों में भगवान (बीज रूप) पहले संसार बाद में, जैन मत में संसार पहले भगवान (फल रूप) अंत में (बनते हैं) ।
मुनि श्री वीर सागर जी
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उक्त कथन सत्य है।संसार अनादिकाल से चला आ रहा है, जिसका अर्थ परिभ़मण या परिवर्तन होता है।जीव कर्म के वशीभूत हुआ मनुष्य, देव आदि चारों गतियों में परिभ़मण होता है अथवा द़व्य, क्षेत्र, काल भाव और भव ऐसे पंच परिवर्तन रुप संसार है।
श्री आदिनाथ भगवान् युग के हुए प़थम तीर्थकर है, इनके द्वारा असि, मसी, कृषी, वाणिज्य और शिल्प इन षटकर्मो का उपदेश दिया गया था। भगवान् श्री आदिनाथ के द्वारा ही संसार चलाने का मार्ग बताया गया था।अन्य मतो में भी भगवान् आदिनाथ का उल्लेख मिलता हैं।
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उक्त कथन सत्य है।संसार अनादिकाल से चला आ रहा है, जिसका अर्थ परिभ़मण या परिवर्तन होता है।जीव कर्म के वशीभूत हुआ मनुष्य, देव आदि चारों गतियों में परिभ़मण होता है अथवा द़व्य, क्षेत्र, काल भाव और भव ऐसे पंच परिवर्तन रुप संसार है।
श्री आदिनाथ भगवान् युग के हुए प़थम तीर्थकर है, इनके द्वारा असि, मसी, कृषी, वाणिज्य और शिल्प इन षटकर्मो का उपदेश दिया गया था। भगवान् श्री आदिनाथ के द्वारा ही संसार चलाने का मार्ग बताया गया था।अन्य मतो में भी भगवान् आदिनाथ का उल्लेख मिलता हैं।