नारकियों के संहनन नहीं तो दु:ख सहते कैसे हैं ?
वीरांतराय कर्म के क्षयोपशम से,
देव भी सुख का अनुभव इसी से करते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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संहनन का मतलब हड्डियो के संचय को कहते हैं।
दुख तो प़तेक को सहना पड़ता है।अतः नारकियों को संहनन नही होते हुए भी सहना पड़ता है।
लेकिन वीतराग वही होता है जो आत्म साधना के द्वारा राग द्वेष को नष्ट कर देते हैं, इसलिये कर्म के क्षयोपशम के कारण देव ही सुख का अनुभव करते हैं लेकिन नारकियो को दुख सहना पड़ता है।
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संहनन का मतलब हड्डियो के संचय को कहते हैं।
दुख तो प़तेक को सहना पड़ता है।अतः नारकियों को संहनन नही होते हुए भी सहना पड़ता है।
लेकिन वीतराग वही होता है जो आत्म साधना के द्वारा राग द्वेष को नष्ट कर देते हैं, इसलिये कर्म के क्षयोपशम के कारण देव ही सुख का अनुभव करते हैं लेकिन नारकियो को दुख सहना पड़ता है।