सत्य-योग
सत्य-मन = सत्य-भावरूप मन।
सत्य-भाव होगा सत्य-पदार्थ को जानने से, उसके चिंतन से।
जब सत्य-मन होगा, उसी से सत्य-योग होगा।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड–गाथा – 218)
सत्य-मन = सत्य-भावरूप मन।
सत्य-भाव होगा सत्य-पदार्थ को जानने से, उसके चिंतन से।
जब सत्य-मन होगा, उसी से सत्य-योग होगा।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड–गाथा – 218)
M | T | W | T | F | S | S |
---|---|---|---|---|---|---|
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 |
8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 |
15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 |
22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 |
29 | 30 | 31 |
4 Responses
मुनि महाराज जी ने सत्य योग की परिभाषा का उदाहरण दिया गया है कि वो भी सत्य है! अतः सत्य मन होगा, उसी से सत्य योग होगा!
‘सत्य-पदार्थ’ ke kya examples hain ?
सच्चे देव,शास्त्र, गुरु।
Okay.