सत्य

सत्य तो मुख्यतः ख़ुद के साथ बोलने के लिये होता है ।
जैसे सबके लिये – “ये मेरा मकान है”,
अपने लिये – “मकान किसका रहा है !”,
अन्यथा मानने वाला मिथ्यादृष्टि हो जायेगा ।

मुनि श्री अविचलसागर जी

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