समझौता
10 जनवरी’80 में 4 दीक्षायें होनी थीं, सो 4 पीछियों का इंतज़ाम किया गया।
5वें सुधासागर जी आ गये तो आचार्यश्री ने 4 की 5 पीछियाँ बनवा दीं।
क्षमासागर जी ने कह दिया – मैं अब घर वापस जाने वाला नहीं हूँ।
आचार्यश्री ने 5 के मोरपंखों को 6 में बाँट दिया।
उन्हें बताया गया कि पीछी का हैंडिल तो है नहीं, तब आचार्यश्री ने पंखों का हैंडिल बनवा कर काम चलवा दिया।
मुनि श्री सुधासागर जी
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समझौते की जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
अतः मुनि महाराज जी ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। जीवन में, परिवार,समाज यानी हर क्षेत्र में समझौता करना आवश्यक है ताकि जीवन में किसी प़कार का विवाद नहीं होगा।