सम भाव = सत्य/असत्य में तटस्थ, संसार में उपयोगी ।
सम्यक भाव = असत्य का परिहार, परमार्थ में उपयोगी ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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समता- – शत्रु मित्र में/ सुख दुःख में /लाभ अलाभ और जय पराजय में हर्ष विवाद नहीं करना साम्य रखना समता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि सम भाव में सत्य और असत्य में तटस्थ हैं वह संसार में उपयोगी होता है जबकि सम्यक भाव में असत्य का परिहार करना जो परमार्थ में उपयोगी होता हैं। अतः जीवन में कमसे कम समता का तो भाव रखना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।
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समता- – शत्रु मित्र में/ सुख दुःख में /लाभ अलाभ और जय पराजय में हर्ष विवाद नहीं करना साम्य रखना समता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि सम भाव में सत्य और असत्य में तटस्थ हैं वह संसार में उपयोगी होता है जबकि सम्यक भाव में असत्य का परिहार करना जो परमार्थ में उपयोगी होता हैं। अतः जीवन में कमसे कम समता का तो भाव रखना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।