समवसरण में समाधान स्वत: नहीं होते, दिव्यध्वनि सुनकर होते हैं ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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समवसरण—तीर्थंकर की धर्म सभा को कहते हैं ,यहां समस्त पुरुष स्त्री, पशु, पक्षी और देवी देवता समान भाव से उपदेश सुनते हैं अथवा सभी जीव तीर्थंकर की दिव्य ध्वनि के अवसर की प़तीक्षा करते हैं।
समवसरण से समाधान स्वतः नहीं होते हैं बल्कि दिव्य ध्वनि को सुनकर होते हैं।
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समवसरण—तीर्थंकर की धर्म सभा को कहते हैं ,यहां समस्त पुरुष स्त्री, पशु, पक्षी और देवी देवता समान भाव से उपदेश सुनते हैं अथवा सभी जीव तीर्थंकर की दिव्य ध्वनि के अवसर की प़तीक्षा करते हैं।
समवसरण से समाधान स्वतः नहीं होते हैं बल्कि दिव्य ध्वनि को सुनकर होते हैं।