सम्यक्-मिथ्यात्व / सम्यक्-प्रकृति
सम्यक्-मिथ्यात्व/ सम्यक्-प्रकृति का सत्त्व पहले से होना चाहिये (तभी तीसरे गुणस्थान में उदय होगा)। यह सम्यक्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि में भी हो सकता है।
सम्यक्-मिथ्यात्व तथा सम्यक्-प्रकृति अनादि-मिथ्यादृष्टि के सत्त्व में नहीं रह सकती क्योंकि मिथ्यात्व के 3 टुकड़े सम्यक्दर्शन होने पर ही होते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मुनि महाराज जी ने सम्यक् मिथ्यात्व एवं समस्त प़कृति के विषय में उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन में मिथ्याद्वष्टि की जगह सम्यक् द्वष्टि होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!