सल्लेखना
आचार्य श्री विद्यासागर जी के सान्निध्य में एक मुनि की सल्लेखना चल रही थी।
मुनिराज जल पर आ गये थे।
उन्होंने इच्छा प्रकट की → बचपन में जिस हलवाई की जलेबी खाता था, वह खानी है।
हलवाई बुलवाया गया, जलेबी आहार में देते समय हलवाई से मुनि के बचपन के नाम से सम्बोधन कराया गया।
मुनि → मेरा नाम अब यह नहीं है।
आचार्य श्री → जब इच्छा बचपन की है तो, नाम भी वही लिया जायेगा ना।
जल भी छोड़कर शांति से सल्लेखना हुई
ब्र. डॉ. नीलेश भैया/ब्र. एस. के. जैन टीकमगढ़