साधक
अपने मैले कपड़े को धोने वाला जब कपड़े पर पानी डालता है, तब मैल और उजागर होता जाता है।
आदिनाथ भगवान गृहस्थ अवस्था में नित्य मज़े से बार-बार भोजन पाते थे; मुनि बनते ही 13 माह तक एक बार भी भोजन नहीं मिला।
मुनि श्री अविचलसागर जी
अपने मैले कपड़े को धोने वाला जब कपड़े पर पानी डालता है, तब मैल और उजागर होता जाता है।
आदिनाथ भगवान गृहस्थ अवस्था में नित्य मज़े से बार-बार भोजन पाते थे; मुनि बनते ही 13 माह तक एक बार भी भोजन नहीं मिला।
मुनि श्री अविचलसागर जी
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साधक का तात्पर्य जो श्रावक जीवन के अंत में शरीर, आहार से ममत्व छोड़कर आत्म शुद्धि के लिए समाधिमरण के लिए साधना करता है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में मनुष्य को समाधिमरण के भाव रखना परम आवश्यक है ताकि साधना के लिए प्रेरित होकर उस मार्ग पर चलना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।