साधु-परमेष्ठी

साधु को परमेष्ठी कारण/कार्य व्यवस्था से नहीं कहा, वे तो हैं ही परमेष्ठी ।
यदि यहाँ कारण/कार्य व्यवस्था मानें तो चौथे गुणस्थान वाले को रत्नत्रय-धारी भी कहना पड़ेगा, इन्हें तो उपचार से भी नहीं कह सकते जैसे आर्यिकाओं को उपचार से महाव्रती कहा, क्योंकि इनमें तो थोड़ा सा भी चारित्र नहीं है ।

मुनि श्री सुधासागर जी

Share this on...

4 Responses

  1. परमेष्ठी—जो परम पद में स्थित है उनको कहते हैं।साधु परमेष्ठी जो28 मूल गुणो का पालन करते हैं।आर्यिकाओं को थोड़ा चारित्र नही होने के कारण उपचार से महाव़ती कहा गया है।

    1. साधु, मोक्ष/परम-श्रेष्ठ-पद पाने के लिए सिर्फ कारण ही नहीं हैं बल्कि actually परमेष्ठी हैं ।
      यदि कारण मानेंगे तो अविरत-स.द्रष्टि को भी रत्नत्रय-धारी कहना होगा ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

January 22, 2019

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930