द्रव्य वह जो अंतरंग तथा बाह्य निमित्तों के माध्यम से अपने अस्तित्व को बनाये रखे, चाहे वह शुद्ध द्रव्य ही क्यों न हो।
परिणमन दूसरे द्रव्यों के सापेक्ष ही होता है, इसे कहते हैं सापेक्षवाद का सिद्धांत।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र 5/5)
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4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने सापेक्षवाद को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
1) मिट्टी का अंतरंग उपादान। बाह्य कुम्हार/ चक्की का होना।
2) परमाणु एक समय में 14 राजू की यात्रा, यह उसकी उपादान शक्ति है। पर गति में धर्म द्रव्य सहायक।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने सापेक्षवाद को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
1) अंतरंग तथा बाह्य निमित्तों ka example denge, please ?
2) Yeh शुद्ध द्रव्य ke liye kaise applicable hoga ?
1) मिट्टी का अंतरंग उपादान। बाह्य कुम्हार/ चक्की का होना।
2) परमाणु एक समय में 14 राजू की यात्रा, यह उसकी उपादान शक्ति है। पर गति में धर्म द्रव्य सहायक।
Okay.