1. हमारे पास सुख की कमी नहीं, पर हमें उसकी सुध नहीं ।
2. अज्ञानी पुण्य के उदय को सुख मानता है, ज्ञानी ज्ञान के उदय को ।
3. सुख का कारण पुण्योदय नहीं, पुण्योदय में अपनापन है ।
(धर्मेंद्र)
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4 Responses
यह कथन बिलकुल सत्य है। पुण्य के उदय में ज्ञानी ही ज्ञान की प्राप्ति को सुख मानता है। अज्ञानी ही पुण्य की उपलब्धि को सुख मानता है, जो अस्थायी होता है। पुण्योदय में धमॅ के क्षेत्र में पुरुषार्थ करने पर ही स्थाई सुख की प्राप्ति होती।
1- आत्मा में अनंत सुख है, पर हम बाहर ढूँढने हैं।
2- अज्ञानी पुण्य से पायी सामग्री में सुख मानता है।
3- पुण्योदय से यशादि तो साधु को भी मिलते हैं पर वे उसमें अपनापन नहीं मानते, इसलिये उसको सुख भी नहीं मानते
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यह कथन बिलकुल सत्य है। पुण्य के उदय में ज्ञानी ही ज्ञान की प्राप्ति को सुख मानता है। अज्ञानी ही पुण्य की उपलब्धि को सुख मानता है, जो अस्थायी होता है। पुण्योदय में धमॅ के क्षेत्र में पुरुषार्थ करने पर ही स्थाई सुख की प्राप्ति होती।
Can meaning of the last line be explained please?
1- आत्मा में अनंत सुख है, पर हम बाहर ढूँढने हैं।
2- अज्ञानी पुण्य से पायी सामग्री में सुख मानता है।
3- पुण्योदय से यशादि तो साधु को भी मिलते हैं पर वे उसमें अपनापन नहीं मानते, इसलिये उसको सुख भी नहीं मानते
Okay.