रावण की चिता शांत भी नहीं हुई थी कि उनकी सारी (16 हजार) रानियों ने दीक्षा ले ली ।
धर्म करने में सूतक बाधक नहीं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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सूतक का तात्पर्य लोक व्यवहार में जन्म मरण के निमित्त से हुई अशुद्धि के शोधन को कहते हैं,इस काल में देव पूजा, आहार देना आदि कार्य नहीं किए जाते हैं ।
अतः मुनि महाराज का कथन सत्य है कि धर्म करने में सूतक बाधक नहीं है, इसलिए रावण की चिता शान्त नहीं होने पर भी उनकी सारी रानियों ने दीक्षा ले ली थी। साधुओं जो धर्म करते हैं, उनके लिए सूतक की पात्रता नहीं होती है,ऐसा आगम में उल्लेख मिलता है ।
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सूतक का तात्पर्य लोक व्यवहार में जन्म मरण के निमित्त से हुई अशुद्धि के शोधन को कहते हैं,इस काल में देव पूजा, आहार देना आदि कार्य नहीं किए जाते हैं ।
अतः मुनि महाराज का कथन सत्य है कि धर्म करने में सूतक बाधक नहीं है, इसलिए रावण की चिता शान्त नहीं होने पर भी उनकी सारी रानियों ने दीक्षा ले ली थी। साधुओं जो धर्म करते हैं, उनके लिए सूतक की पात्रता नहीं होती है,ऐसा आगम में उल्लेख मिलता है ।