सृष्टि / पुरुषार्थ
सृष्टि अधूरा देती है; पुरुषार्थ से हमको पूर्ण करने को कहती है,
जैसे…
बीज दिया, फ़सल किसान उगाये;
मिट्टी दी, घड़ा कुम्हार बनाये;
इन्द्रियां दीं, उपयोग हम पर छोड़ा।
नाई, दर्जी, सभी पसंद पूछकर आगे की क्रिया करते हैं, सृष्टि भी।
मुनि श्री सुधासागर जी
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सृष्टि का तात्पर्य जो कुछ हमको प्रकृति द्वारा प़दान किया गया है, पुरुषार्थ का मतलब चेष्टा या प़यत्न करना होता है।चार पुरुषार्थ धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि सृष्टि अधूरी देती है, पुरुषार्थ हमको पूर्ण करने को कहती है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में हर क्षेत्र में पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।