सोलह कारण भावना

पहले दर्शन-विशुद्धि भावना भाना आवश्यक नहीं। सोलह भावनाओं में से हर भावना बराबर महत्त्वपूर्ण है/ स्वतंत्र कारण है तीर्थंकर प्रकृति बंध में।
(श्री षट्खंडागम, उनकी टीकाओं तथा धवला जी के अनुसार)

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 6/24)

Share this on...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

November 20, 2024

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930