स्वभाव
संसार में अलग-अलग स्वभाव की वस्तुएँ हैं। वे स्वभाव नहीं छोड़तीं। हाँ, निमित्त पाकर कुछ समय के लिये विभाव रूप परिणमन कर लेती हैं, जैसे जल अग्नि का सम्पर्क पा कर ऊँगली जला देता है। किन्तु इस विभावी परिणमन का प्रभाव स्पर्शन इन्द्रिय तक सीमित है; रसनेन्द्रिय इससे प्रभावित नहीं होती है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने स्वभाव का वर्णन किया गया है वह पूर्ण सत्य है!