स्वरूप / लक्षण

स्वरूप त्रैकालिक।
जीव का स्वरूप –
स्वाभाविक → मूर्तिक/ अमूर्तिक, संकोच/ विस्तार वाला।
वैभाविक → परिणमन के साथ।

लक्षण → उपयोगो लक्षणम्।
लक्षण जो स्वरूप को बनाये रखे।
द्रव्य का लक्षण सत्।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/38)

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