स्वाभिमान में अपना तथा दूसरे का मान,
अभिमान में अपना मान तथा दूसरे का अपमान ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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यह कथन सत्य है कि स्वाभिमान में अपना तथा दूसरे का मान होता है जब कि अभिमान में अपना मान और दूसरे का अपमान होता है।मोह के कारण अभिमान को adjustment करना पड़ता है।अतः अभिमान करने का प़यास करना नहीं चाहिये तभी स्वाभिमान प़ाप्त हो सकता है।
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यह कथन सत्य है कि स्वाभिमान में अपना तथा दूसरे का मान होता है जब कि अभिमान में अपना मान और दूसरे का अपमान होता है।मोह के कारण अभिमान को adjustment करना पड़ता है।अतः अभिमान करने का प़यास करना नहीं चाहिये तभी स्वाभिमान प़ाप्त हो सकता है।