स्व व परमात्म चिंतन
आचार्यों ने स्व-चिंतन को उत्तम, देह को मध्यम, विषयों को अधम और पर-चिंतन को अधमाअधम कहा है ।
परमात्मा भी तो “पर” है, उसका चिंतन ?
लालमणी भाई
परमात्मा का चिंतन इसलिये कर सकते हैं/करना चाहिये, क्योंकि वह मेरा शुद्ध स्वरूप/अभीष्ट/goal है ।
तो उसका चिंतन तो मेरा ही चिंतन हुआ ना !
चिंतन
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उपरोक्त कथन सत्य है कि आचार्यों ने स्व चिंतन को उत्तम कहा है, यानी अपनी आत्मा का चिंतन होना आवश्यक है, जबकि देह को मध्यम माना है, विषयों को अधम और पर-चिन्तन को अधमा अधम कहा गया है। परमात्मा भी पर है लेकिन परमात्मा का चिंतन इसलिए कर सकते हैं और करना भी चाहिए, क्योंकि यह मेरा शुद्ध स्वरुप और अभीष्ट है। मेरा उद्देश्य आत्मा से परमात्मा बनने का है, अतः उसका चिन्तन मेरा चिंतन हुआ है न !