हुंडावसर्पिणी दस कोड़ाकोड़ी सागर का, यानि सुखमा-सुखमा से लेकर दुखमा-दुखमा तक होता है, चाहे 1, 2, 6ठे काल में इसका प्रभाव दिखे या न दिखे ।
मुनि श्री सुधासागर जी (पं. रतनलाल बैनाड़ा जी)
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4 Responses
असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल बीत जाने पर एक हुंडासर्पिणी काल आता है। इसमें कई बातें असामान्य होती हैं, जैसे तृतीय काल में तीर्थंकर व चक्रवर्ती का उत्पन्न होना, चक्रवर्ती का मान भंग होना, तीर्थंकरों पर उपसर्ग होना, अयोध्या के अलावा अन्यत्र जगह भी जन्म होना,इसी प्रकार सम्मेदशिखर के अलावा अन्य स्थानों से तीर्थंकरों का मोक्ष जाना आदि होता है।
अतः मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल बीत जाने पर एक हुंडासर्पिणी काल आता है। इसमें कई बातें असामान्य होती हैं, जैसे तृतीय काल में तीर्थंकर व चक्रवर्ती का उत्पन्न होना, चक्रवर्ती का मान भंग होना, तीर्थंकरों पर उपसर्ग होना, अयोध्या के अलावा अन्यत्र जगह भी जन्म होना,इसी प्रकार सम्मेदशिखर के अलावा अन्य स्थानों से तीर्थंकरों का मोक्ष जाना आदि होता है।
अतः मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
1, 2 aur 6th kaal me kya “हुंडावसर्पिणी” ka prabhav nahi dikhta hai aur agar nahi, to please udaharan se spasht karen?
स्वर्गों में असाता के उदय का प्रभाव दिखता नहीं,
नरकों में साता का नहीं ।
Okay.