Month: October 2010

तैजस/कार्मण शरीर

ये सर्वत्र अप्रतिघाती होते हैं, जैसे – अग्नि लोहे में प्रवेश कर जाती है । आहारक और वैक्रियिक शरीर भी सीमा के अंदर अप्रतिघाती होते

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दान

वृक्ष बार बार फल देते हैं, दान भी बार बार देना चाहिये, जो व्यवहार है । व्यवहार बताता है, निश्चय गूंगा होता है । आचार्य

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मंगल आशीष

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October 2, 2010