Day: November 20, 2010

पुरूषार्थ

आजकल पुरूषार्थ व्यायाम करने वाली साइकिल जैसा है , चलाते चलाते, पसीना पसीना हो जाते हैं पर पहुंचते कहीं नहीं । मुनि श्री सौरभसागर जी

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मंगल आशीष

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