Month: January 2011
सर्वघाती निषेक
क्षयोपशमिक भाव में सर्वघाती निषेकों का उदय नहीं होता, सिर्फ सत्ता में रहते हैं जैसे अचक्षु दर्शन, 5 अंतराय आदि का । पं. रतनलाल बैनाड़ा
कर्म
कर्म तो रस्सी हैं , या तो काट लो, या बांध लो । (कटेंगे नहीं तो गले का फंदा बनते जायेंगे) चिंतन
Guidance
True guidance is like a small lamp in a dark forest. It doesn’t show everything at once. But it gives enough light for the next
दौलत
दो लात मारे वह दौलत । जब दौलत आती है तब सीने पर लात मारती है, सीना फूल जाता है । जब जाती है तब
परिहारविशुद्धि चारित्र
परिहारविशुद्धि चारित्र के साथ साथ सामायिक और छेदोपस्थापना चारित्र होता है । कुछ ऐसे मुनिराज भी होते हैं जिनके पांचों चारित्र पाये जाते हैं ।
गृहस्थी
गृहस्थी में चाहकर भी बहुत सी पाप क्रियाओं से बच नहीं पाते, साधुजन अनचाहे भी बहुत सी पाप क्रियाओं से बचे रहते हैं । चिंतन
विक्रिया
नीचे नीचे नरकों में विक्रिया अशुभतर होती जाती है, अशुभतर याने विक्रिया सिमिट नहीं पाती, फैलती जाती है । तत्वार्थसूत्र- अ. 3 सू.3
Relations
To have good relations with all, we should keep our nature like a theater screen. It accepts all characters but remains peacefully white. (Mr. Mehul)
Recent Comments