Month: February 2011
निर्माण
मंदिर का निर्माण कारीगर ऊपर चढ़कर ही करता है । चारित्र की सीढ़ी पर चढ़े बिना, व्यक्तित्व (धर्म) का निर्माण संभव नहीं है । आर्यिका
पुण्य/वैराग्य
पाप की सामग्री छोड़ना – पुण्य है । पुण्य की सामग्री छोड़ना – वैराग्य ।
सत्यधर्म
धर्म तो सत्य है ही, फिर धर्म के आगे ‘सत्य’ लगाने की क्या ज़रूरत है ? क्योंकि आज असत्य को भी धर्म कहने लगे हैं
मान
दूसरे का ‘स्वाभिमान’ भी ‘अभिमान’ लगता है और अपना ‘अभिमान’ भी ‘स्वाभिमान’ । इसलिये सभी प्रकार के ‘मान’ से सतर्क रहना चाहिये । प्रो. श्री
शुभ-लाभ
लोभी से लोभी व्यापारी भी अपनी दुकान में “शुभ-लाभ” लिखता है । पहले ‘शुभ’ यानि धर्म, फिर ‘लाभ’ यानि संसार । (श्री गौरव)
PASSION
Performance always comes from PASSION And not from PRESSURE. So be PASSIONATE . LOVE what you do & do what you LOVE……! Success Is Yours.
काल द्रव्य
काल द्रव्य के परिणमन में कौन सहकारी होता है ? काल द्रव्य स्वयं जैसे दीपक दूसरों को तो प्रकाशित करता ही है, स्वयं भी प्रकाशित
साधु/असाधु
साधु को सोने मत दो, असाधु को उठने मत दो । मुनि श्री तरूणसागर जी
संसार
घर से चले थे, ख़ुशी की तलाश में । गम रास्ते में मिल गये और साथ हो लिये ।। (श्री जितेन्द्र कुमार जैन)
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