Month: April 2011
सम्यग्दर्शन के गुणों का क्रम
सम्यग्दर्शन के 4 गुणों का क्रम – प्रशम, संवेग, अनुकम्पा, और आस्तिक्य ही रहेगा, पहले गुणों के बिना आगे के गुण आना संभव ही नहीं
उपसर्ग
ज्ञानी सोचता है कि उपसर्ग से कर्म जल्दी कट जायेंगे, उपसर्ग/प्रश्न पत्र देने वाला कोई भी हो, परीक्षा तो आपको ही देनी होगी। आचार्य श्री
सराहना
तालियां बच्चों का उत्साह बढ़ाती हैं, बड़ों का उत्साह घटाती हैं। बड़ों में प्रायः यह घमण्ड या Over confidence का कारण बनतीं हैं । आचार्य
दान
एक दिन युधिष्ठर जब राज्यसभा विसर्जित कर रहे थे, तब एक याचक आ गया । युधिष्ठर – कल आना, आज तो राज्यसभा विसर्जित हो रही
हीन भावना
जो दूसरों को बड़ा मानते हैं और अपने को छोटा मानकर हीन समझते हैं, वे उतने ही दोषी हैं, जितने वे लोग-
उपयोग
1 से 3 गुणस्थान में घटता हुआ अशुभोपयोग होता है। यह तीव्र कषाय की अपेक्षा से होता है। 4 से 6 गुणस्थान में बढ़ता हुआ
संतुलन
तुम्हारा जीवन एक उपहार है और तुम इस उपहार के आवरण को खोलने के लिए आए हो। तुम्हारे वातावरण, परिस्थितयां और शरीर आवरण के कागज
ज्ञान
जो अपने ज्ञान को बाँटते नहीं, वे ऐसे फूल हैं जो खिलते तो हैं पर सुगन्ध नहीं फैलाते। (धर्मेंद्र)
Attitude
बरसात में सब चिड़ियाँ अपने घोंसले में छिप जाती हैं, चीलें बादलों के ऊपर उड़ने लगती हैं। Problem same है, Attitude अलग अलग । (श्री
Present
It is a mistake to look too far ahead. Only one link in the chain of destiny can be handled at a time. Mr. Winston
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