Month: July 2011

पूज्यता

पूज्यता हितकारी की नहीं, हितकारी तो गोबर भी है । पूज्यता तो पंचपरमेष्ठी की ही होती है ।

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फ़र्ज

जो कर्ज अदा करने का फ़र्ज निभाते हैं, उनके कोई मर्ज नहीं रहता । मुनि श्री सौरभसागर जी

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संसार/मोक्ष

चींटी चावल ले चली, बीच में मिल गयी दाल । कहि कबीर दोऊ ना चलें, एक लै दूजी ड़ार ।।

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ज्ञानी

ज्ञानी पुण्य और पाप दौनों  के उदय को पुद्गल की पर्याय मानता है , इसलिये दौनों परिस्थितियों में समता भाव रखता है । रत्नत्रय – 115

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अगला विश्वयुद्ध

अगला विश्वयुद्ध भगवान के बनाये हुये इंसानों तथा इंसान के बनाये हुये इंसानों में होगा । क्योंकि इंसान इन Robots में सोचने की शक्ति ड़ालने

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आंतरिक

साँप का केंचुली छोड़ना बड़ी बात नहीं है, साँप का ज़हर की थैली छोड़ना बड़ी बात है । आचार्य श्री विशुद्धसागर जी

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मांझी

मांझी पहले दूसरों को किनारे पर उतारता है फिर खुद उतरता है । गुरू/भगवान भी हमको पहले किनारे पहुंचाना चाहते हैं, फिर खुद मोक्ष जाते

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सम्मान

सम्मान देने से व्यक्ति के गुण उजागर होते हैं, तब उनका उत्तरदायित्त्व और भी बढ़ जाता है कि वह उन गुणों को बरकरार रखें/उन्हें और

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दर्शन

अपर्याप्तक अवस्था तथा विग्रहगति में भी चक्षु या/और अचक्षु या/और अवधि   दर्शन होता है । क्योंकि हर जीव के ज्ञान हर समय और हर अवस्था

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मंगल आशीष

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July 31, 2011