Month: May 2012
आनंद
पहले अनुकूल परिस्थतियों में आनंद से रहना सीखें, फिर प्रतिकूल परिस्थतियों में आनंदित रहने की आदत ड़ालें । तब आप आनंद से परमानंद की ओर
शुद्ध द्रव्य
द्रव्यों में उत्पाद व्यय/षटगुणी वृद्धि हानि, अगुरूलघु गुण की अपेक्षा से है । पं रतनलाल बैनाड़ा जी
मोक्षमार्ग
समता की साधना और चारित्र की पवित्रता ही मोक्षमार्ग को प्रशस्त करती है । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
पुरूषार्थ
मुर्गी भी एक एक दाने के लिये मिट्टी हटा हटा कर मेहनत करती है । (Mr. Henry Ford)
संकोच
सबसे बड़ा ऐव संकोच है, यही हमारे कल्याण में बाधक है । यह आता है, इस भाव से कि – हम सबको प्रसन्न रखें ।
Enmity
An enemy occupies more space in the Brain, Than a Well-Wisher in the Heart. Don’t damage your Brain, Improve the Heart ! (Dr. Sudheer)
प्रारंभ
एक कदम चलने वाला भी हजारों मील चल लेता है, कहीं से चलें तो सही ( प्रारंभ तो करें ) | आचार्य श्री विद्यासागर जी
मोह/निर्मोह
मोह अपनों से कम करें, निर्मोह दूसरों से कम करें, अंत में मोह और निर्मोह दोनों को समाप्त करें । चिंतन
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