Day: September 3, 2012

निदान

इस आर्तध्यान से जीव मिथ्याद्रष्टि हो जाता है । श्री धवला जी – 6/501

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जीना

अतीत में जीना मोह है, भविष्य में जीना लोभ है और वर्तमान में जीना कर्मयोग है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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September 3, 2012

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