Month: May 2017

ख़राब समय

“समय” जब नाच नचाता है ना साहिब ! तब सारे सगे-संबंधी काेरियाेग्राफर बन जाते हैं !! (डॉ.अमित राजा)

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कर्म उदय

सविपाक निर्जरा में आबाधा के बाद, पहले निषेक में बहुत कर्म परमाणु खिरते हैं, फिर कम होते जाते हैं । अविपाक में एक साथ बहुत

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कलयुग

सुंदर मोर* कम होते जा रहे हैं, जो हैं उनकी आवाज़ शोर शराबे में सुनाई नहीं देती है । उन्हें देखने/सुनने सुबह जल्दी उठकर, उनके

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ग़लतफ़हमी

ग़लतफ़हमियों के सिलसिले इतने दिलचस्प हैं….. हर ईंट सोचती है, दीवार मुझ पर टिकी है…..!! (सुरेश)

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शीशा देने वाला

जब भी मैं रोया करता, माँ कहती… ये लो शीशा, देख इसमें कैसी तो लगती है ! रोनी सूरत अपनी, अनदेखे ही शीशा मैं सोच-सोचकर

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ख़्वाहिश

ज़िंदगी में सारा झगड़ा ही ख़्वाहिशों का है, ना तो किसी को ग़म चाहिए…. और ना ही किसी को कम….। (धर्मेंद्र)

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ज़िंदगी

लीज़ पर मिली है ये ज़िंदगी… रजिस्ट्री के चक्कर में ना पड़ें…। (सोमेश)

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मंगल आशीष

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May 31, 2017