Month: May 2017
ख़राब समय
May 30, 2017
“समय” जब नाच नचाता है ना साहिब ! तब सारे सगे-संबंधी काेरियाेग्राफर बन जाते हैं !! (डॉ.अमित राजा)
कर्म उदय
May 30, 2017
सविपाक निर्जरा में आबाधा के बाद, पहले निषेक में बहुत कर्म परमाणु खिरते हैं, फिर कम होते जाते हैं । अविपाक में एक साथ बहुत
कलयुग
May 29, 2017
सुंदर मोर* कम होते जा रहे हैं, जो हैं उनकी आवाज़ शोर शराबे में सुनाई नहीं देती है । उन्हें देखने/सुनने सुबह जल्दी उठकर, उनके
ग़लतफ़हमी
May 28, 2017
ग़लतफ़हमियों के सिलसिले इतने दिलचस्प हैं….. हर ईंट सोचती है, दीवार मुझ पर टिकी है…..!! (सुरेश)
शीशा देने वाला
May 27, 2017
जब भी मैं रोया करता, माँ कहती… ये लो शीशा, देख इसमें कैसी तो लगती है ! रोनी सूरत अपनी, अनदेखे ही शीशा मैं सोच-सोचकर
ख़्वाहिश
May 25, 2017
ज़िंदगी में सारा झगड़ा ही ख़्वाहिशों का है, ना तो किसी को ग़म चाहिए…. और ना ही किसी को कम….। (धर्मेंद्र)
ज़िंदगी
May 23, 2017
लीज़ पर मिली है ये ज़िंदगी… रजिस्ट्री के चक्कर में ना पड़ें…। (सोमेश)
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