Month: June 2018
खुशियाँ
मुठ्ठियों में क़ैद हैं जो खुशियाँ वो बांट दो यारो, ये हथेलियां तो इक दिन वैसे भी खुल ही जानी हैं (सुरेश)
बोलना
” मनचाहा ” बोलने के लिए , ” अनचाहा ” सुनने की ताकत होनी चाहिए । (शुचि)
स्नेह/वात्सल्य
स्नेह तो क्रूर भी अपनों से करते हैं पर यह स्वार्थपरायणता है, 15 प्रमादों में आता है । जबकि वात्सल्य, सम्यग्दर्शन के 8 अंगों में आता है
बदलना
स्वयं को बदलना…कितना कठिन है… फिर दूसरे को बदलना…कैसे सरल हो सकता है ! (मंजू)
बंध उपादेय
सिर्फ तीर्थंकर प्रकृति बंध (चारों प्रकार – प्रदेश प्रकृति आदि) उपादेय है । भावपाहुड़ (व्य. कृ. – 1/588)
प्राप्य
प्राप्त वही होगा जिससे खुश हो रहे हो । जैसे जन्म-दिन पर, तो बार बार जन्म/खूब सारे जन्म/एक साँस में 18 बार जन्म । पूजा में
विश्वास
कुछ चीज़ें ‘कमजोर’ की हिफाज़त में भी ‘महफूज़’ रहती हैं, जैसे ‘मिट्टी की गुल्लक में लोहे के सिक्के…’ बशर्ते विश्वास हो । (सुरेश)
भोगभूमि का आहार
स्वर्गों जैसी ही व्यवस्था – नियति अनुसार अमुक दिनों (भरत भूमि के दिन) के बाद आहार की उदीरणा होगी और उनको आहार लेना ही होगा,
परोपकार
फूंक मार कर दिये को बुझा सकते हैं.! किन्तु… अगरबत्ती को नहीं… क्योंकि जो ख़ुद को जलाकर दूसरों को सुगंध का अनुभव कराता हो, उसे
निद्यति/निकाचित
ये कर्म पुण्य (तथा पाप) रूप भी होते हैं जैसे तीर्थंकर, देवायु आदि । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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