Month: October 2018

तेरहवीं और मुंड़न

जैन परम्परा/शास्त्रों में प्रियजनों के मरण पर तेरहवीं और मुंड़न की प्रथा नहीं है । मुनि श्री सुधासागर जी

Read More »

प्रायश्चित / प्रत्याख्यान

प्रायश्चित की सार्थकता प्रतिक्रमण/ प्रत्याख्यान के साथ ही होती है, वरना गलती करते जाओ और प्रायश्चित लेते जाओ। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Read More »

धर्मात्मा

जो देश/ समाज/ परिवार/ शरीर की बाधाओं के रहते हुये भी धर्म करने की राह निकाल ही ले , कृत से ना कर सके तो

Read More »

दशहरा

जैन धर्म के भरतेष-वैभव ग्रंथानुसार भरत चक्रवर्ती जिस दिन छह खंडों की विजय यात्रा पर निकले थे, वह दिन दशहरे के रूप में मनाया जाता

Read More »

सल्लेखना और दीक्षा

गृहस्थ की सल्लेखना के अंत में दीक्षा विधिवत होनी चाहिये तथा केशलोंच, आहार कम से कम एक बार हो तभी मुनि संज्ञा दी जानी चाहिऐ

Read More »

शौच / आकिंचन

शौच        – “और पाने” का भाव ना होना, आकिंचन – “मेरा कुछ है ही नहीं” का भाव ।

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives
Recent Comments

October 21, 2018