Month: October 2018
गुरु और वाणी
गुरु प्रमाणिक, पर उनकी वाणी नहीं, इसीलिये प्रवचन के बाद वंदना की जाती है, जिनवाणी की । मुनि श्री सुधासागर जी
आकांक्षा
आकांक्षा बुरी नहीं है, दुराकांक्षा और अतिमहत्वाकांक्षा से बचें ।
देवों की क्रियायें
देव, मनुष्य/त्रियंचों की तरह अद्धकर्म नहीं करते, उन्हें नाखून भी काटने की ज़रूरत नहीं ।
क्षयोपशम भाव
मिथ्यादृष्टि के भी क्षयोपशम-भाव होते हैं, 1 से 12 गुणस्थानों में मतिज्ञान आदि 4 ज्ञान, 3 अज्ञान, 3 दर्शन, दानादि-5लब्धि, सम्यक्त्व, चारित्र और संयमासंयम ।
गुरु-दर्शन
गुरु के समीप ही नहीं पहुँच पाते, दूर से ही दर्शन होते हैं तो दूरदर्शन पर क्यों ना करें ? सूर्य दूरदर्शन पर दिखेगा तो
द्रव्य-थाली
द्रव्य चढ़ाने वाली थाली में स्वास्तिक ही बनाना चाहिये । ठौने पर भी स्वास्तिक । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भोजन की पवित्रता
धर्म की शुरुआत चौके से होती है; इसीलिये पहले घर छोटे, चौके बड़े होते थे । प्राय: बीमारियों की जड़ अशुद्ध भोजन ही है ।
विज्ञान और वीतराग विज्ञान
विज्ञान साधन देता है, वीतराग विज्ञान साधनों पर नियंत्रण । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सच्चा आनंद
अभाव में भी सद्भाव जैसा आनंद ही सच्चा है । मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
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