Month: June 2019
संसार / परमार्थ
संसार चलाने के लिये षट् कर्म बताये, परमार्थ के लिये 6 आवश्यक । दोनों का बराबर बराबर महत्व (गृहस्थों के लिये ) । आवश्यक से
रिश्ते
पानी कितना भी मैला हो, प्यास बुझाने लायक ना हो ; पर आग तो बुझा ही देगा । (सुरेश) रिश्तेदार, Emergency में /लिहाज़ में तो
दिगम्बरत्व
दिगम्बरत्व के बिना इंद्र नहीं बन सकते (भवनत्रिक को छोड़कर)। इसीलिये सीता प्रतीन्द्र बनीं । आचार्यों का दूसरा मत भी है – श्रावक (प्रतिमाधारी) सल्लेखना
अनुजीवी गुण
अनुजीवी गुण* आत्मा के ही होते हैं । ये हैं – अनंत ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य । मुनि श्री सुधासागर जी * जो आत्मा
संसार / सुख
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का सर्वोत्तम विचार… “दर्पण में मुख और संसार में सुख, होता नहीं है, बस दिखता है” ( ब्र. निलेश भैया
निमित्त / पुरुषार्थ
अनुभवी तैराक के लिये नदी पार करने नाव की आवश्यकता नहीं, अनाड़ी को लकड़ी का टुकड़ा भी महत्वपूर्ण होता है । मुनि श्री सुधासागर जी
आत्मा / रागादि
आत्मा और रागादि का संबंध अशुद्ध निश्चय नय से कहा जाता है। इसे व्यवहार नय भी कहते हैं। ज्ञानशाला
बेजोड़
एक जुट हों, एक से जुड़ें नहीं, बेजोड़* बनें । आचार्य श्री विद्यासागर जी * अपूर्व/अखंड/बिना जोड़/मतभेद रहित
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