Month: August 2019
पुण्य
पुण्य सर्वथा हेय नहीं, श्रावकों के लिये पापानुबंधी हेय है पर पुण्यानुबंधी उपादेय है । मुनि श्री सुधासागर जी
राग
वीतराग धर्म कहता है – चोर (द्वेषादि) को नहीं, चोर की माँ (राग) को पकड़ो । डॉ.वीरसागर जी जैन
पुण्य
पुण्य ज्ञान की अपेक्षा – ज्ञेय, श्रद्धा की अपेक्षा – हेय, क्रिया की अपेक्षा – उपादेय । ( श्रावकों की अपेक्षा, मुनियों की अपेक्षा नहीं
स्वतंत्रता-दिवस
देश के पतन का कारण … स्वतंत्रता के पहले की कर्म-भूमि को हमने स्वतंत्रता के बाद भोग-भूमि में बदल दिया है । मुनि श्री प्रमाण
आत्मा और शरीर
क्या आत्मा इतनी कमजोर है कि दुर्घटना होने पर/शरीर टूटने पर निकल जाती है ? क्या राजा टूटी/फूटी कुर्सी पर बैठेगा ?? मुनि श्री सुधासागर
भगवान का नाम
गाड़ी पकड़ी जाने पर किसी बड़े आदमी का नाम लेने पर पुलिस छोड़ देती है, ऐसे ही भगवान का नाम लेने पर कर्म छोड़ देते
समयसार
2 प्रकार के – 1. कारण समयसार = शुद्धोपयोग 2. कार्य समयसार = केवल-ज्ञान समयसार गाथा-134
नौकरी और धर्म
नौकरी के साथ धर्म का सामंजस कैसे बिठायें ? नौकरी को धर्म रूपी शरीर का अंग समझ कर । मुनि श्री सुधासागर जी
व्रत / नियम
नियम सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि दोनों ले सकते हैं परन्तु व्रत सम्यग्दृष्टि ही । मुनि श्री सुधासागर जी
पाप
पाप को भूमि से भारी इसलिये कहा है क्योंकि पत्थर तो समुद्र की तलहटी तक ही जाता है पर पाप तो नरक/जन्मजन्मांतरों तक जाता है
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