Month: August 2019
मुनि के लिये आहार
मुनि के लिये आहार बनाने में दोष है पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों की शुद्धता रखकर आहार बनाने का मतलब ये नहीं होगा की
सफलता
सफलता वह… जिसमें असफल होने पर भी सफलता जैसा समता का भाव/संतुष्टि रहे ।
नरकायु और नियम
सच्चे देव शास्त्र गुरू पर श्रद्धा, ये नियम में नहीं आयेगा । वरना राजा श्रेणिक नरकायु बांधने के बाद क्षायिक सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं करते ।
भोगभूमि और कल्पवृक्ष
अढ़ाई द्वीप के बाहर की भूमि में कल्पवृक्ष नहीं होते हैं क्योंकि वहाँ मनुष्य नहीं रहते हैं और तिर्यंचों को कल्पवृक्ष चाहिये नहीं । प्रकाश
बोल
पशु बोल नहीं सकते इसलिये दुःख सहते हैं । इंसान के बोलने पर संयम नहीं है, इसीलिये दुःख को निमंत्रण देते हैं ! 🙏🏻🙏🏻🙏🏻 जय
आहार / कषाय
आहार बुद्धिपूर्वक छोड़ा जाता है, कषाय शुद्धिपूर्वक । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सुख / दुःख
मैंने दिया है, मुझे पाना है- यह भाव दुःख का रास्ता है। मैंने पाया है, मुझे देना है- यह भाव सुख का रास्ता है। (मंजू)
गंधोदक
अभिषेक के बीच या शांतिधारा से पहले गंधोदक ले सकते हैं पर थाली से नहीं, टोंटी लगाकर बाहर के पात्र से । मुनि श्री सुधासागर
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