Month: October 2019

त्रस की अवधि

त्रस पर्यायों की अधिकतम अवधि (एक बार में ) 2000 सागर होती है । मुनि श्री सुधासागर जी

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भोगभूमि में विकलत्रिक

देवताओं के द्वारा बदला लेने के भाव से, पशुओं के शरीर के साथ भोगभूमि में विकलत्रिक फिक जाते हैं/वहाँ पाये जा सकते हैं । मुनि

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आतिशबाजी

बारूद को देखना भी अशुभ/ अपशगुन है । इसीलिए भारतीय-संकृति में स्वागत पुष्पवृष्टि से होता था, बंदूक/ तोप चलाकर नहीं (यह तो पाश्चात्य सभ्यता है)

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भेद / अभेद

भेद से दृष्टि पर्याय की ओर…व्यवहार है, अभेद से दृष्टि गुणों/द्रव्यों की ओर…निश्चय है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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दिल और दिमाग

जहाँ लाभ/हानि हो वहाँ तथा बुरे कामों के करने से पहले दिमाग लगाओ, घर परिवार के और अच्छे काम दिल से करना चाहिए ।

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मुनि के आहार में बंध

अशुद्ध आहार से पाप बंध, शुद्ध आहार से पुण्य बंध, शुद्धोपयोग से निर्जरा । (क्योंकि क्षुधा तो है ना) ज्ञानशाला

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वर्तमान

आज में जीना बुरा नहीं, पर आज को ही मानना बुरा है । चिंतन

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मंदिर में दिशा

मंदिर में भगवान की ओर मुँह करके पूजादि करना सर्वोत्तम । उसे पूर्व दिशा माना जाता है । (क्योंकि भगवान में तो 100 सूर्य का

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पूजा और आचरण

पूजा करने वालों के आचरण नहीं आता तो पूजा का क्या फायदा ? पूजा का तभी तक फायदा, जब तक जीवन में आचरण ना आये;

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मंगल आशीष

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October 26, 2019