Month: November 2019
मूल-प्रतिमा
वेदी पर मूल प्रतिमा विशेष भगवान की होती है, ना कि मूर्ति की । जैसे किसी वेदी पर महावीर भगवान की छोटी सी मूल प्रतिमा
बेईमानी
2 प्रकार की – 1 . बाह्य – व्यापार/रिश्वत रिश्तों में समाज/राष्ट्र के प्रति 2. अंतरंग – धर्म के प्रति अपनी आत्मा से और ये
व्यवहार / निश्चय
व्यवहार पालना कठिन है । निश्चय पाना कठिन है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
परोपकार
परोपकार तो भावना करते ही हो जाता है (अपना), सामने वाले को उसका लाभ मिले भी/ना भी मिले/ हो सकता है नुकसान ही हो जाये
भगवान के बिना मन, दया
भगवान के भाव मन तो होता नहीं तो दया कैसे ? भगवान के 34 अतिशयों में से एक है “अदया का अभाव” । उसकी वज़ह
धर्म / शर्म
धर्म में शर्म कैसी ? जब पापी दुनिया की शर्म ना करके, पाप नहीं छोड़ते तो धर्मात्मा धर्म क्यों छोड़ें ! मुनि श्री सुधासागर जी
ऋद्धियाँ
कुल 64 ऋद्धियाँ तो एक साथ हो ही नहीं सकतीं जैसे सर्वावधि होगी तो परमावधि नहीं होगी । केवलज्ञान होगा तो बाकी 63 नहीं होंगी
उपयोगिता / उदारता
हम सूरज की कद्र उसकी उँचाई/ तेजस्वता के कारण नहीं करते बल्कि उसकी उपयोगिता/ उदारता के कारण करते हैं । अतः व्यक्ति नहीं, व्यक्तित्व आदरणीय
एकत्व
हर जीव का अपना-अपना केन्द्र, द्रव्य-रूप तथा पर्याय/गुण-रूप परिधि होती है । हर जीव अपने केंद्र पर एक पैर रखकर अपनी परिधि पर दूसरा पैर
संस्कार
💎💎💎💎💎💎💎💎💎💎💎💎 पिता ने पुत्र से कहा… बेटा सँभलकर चलना ! तो पुत्र ने जवाब दिया… चलना तो आप को है सँभल कर , मुझे तो
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