Month: December 2019
भोग
भोग तीन तरह से होता है – भोगों की वस्तुओं को – 1) रखकर 2) ग्रहण करके 3) उनमें प्रवृत्ति करके । मुनि श्री प्रणम्यसागर
हेय / उपादेय
छूटने की अपेक्षा तो शुद्धोपयोग भी हेय है । पर सब हेय छोड़ने योग्य नहीं होते, क्योंकि शुद्धोपयोग केवलज्ञान में कारण है । ऐसे ही
भाग्य / पुरुषार्थ
भाग्य – बासी पूड़ी, पुरुषार्थ – ताजी पूड़ी । आटा दोनों में same.
पुण्य
अरहंत पद पुण्य के क्षय से नहीं, पुण्य का फल है; जो 13वें गुणस्थान में उदय में आता है । तथा पाप के क्षय से
संस्कृति
क्रिया और विचारों का संस्कार ही संस्कृति है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सराग संयम
तत्वार्थसूत्र में सराग-संयम 6, 7 गुणस्थान में कहा, इसीलिये संयमा-संयम (5वें गुणस्थान) को अलग रखा है । ब्र. सविता दीदी
क्रोध
निमित्त मिलने पर, नैमित्तिक-भावों से क्रोध आता है ; ये निमित्त बाह्य या अंतरंग भी हो सकते हैं । 2) क्रोध अज्ञानी को ही आता
राघव/तंदुल मछ्
दोनों ही 16वें स्वर्ग तक भी जाते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
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