Month: December 2019

नियोग

नियोग यानि निश्चित/अनिवार्य ! आचार्य श्री विद्यासागर जी

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बोल

बोल नपा-तुला होता है तो स्वादिष्ट लगता है, ज्यादा होता है तो गड़बड़ी (अपच) होती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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संसार

“पर” पदार्थ को अपना मानना ही संसार है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मुसीबतें

“मुसीबतें” रुई से भरे थैले की तरह होती हैं; देखते रहेंगे….तो बहुत भारी दिखेंगी; और यदि उठा लेंगे… तो हल्की हो जायेंगी । (सुरेश)

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क्षयोपशम भाव

1 से 12 गुणस्थान तक । क्षयोपशम सम्यग्दर्शन के सद्भाव में, क्षयोपशम सम्यग्दर्शन की अपेक्षा – 4 से 7 गुणस्थान में । तीसरे गुणस्थान में

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मर्यादा

लक्ष्मण-रेखा का उलंघन रावण हो या सीता या फिर ख़ुद राम ही क्यों ना हों, दंडित करेगा ही ।

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परिणमन

एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप परिणमन नहीं कर सकता, पर (अशुद्ध) जीव ज्ञेय रूप परिणमन करता है, जैसे दुश्मन को देख क्रोधी । आचार्य श्री

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संदेह

कोई अगर आपके अच्छे कार्य पर सन्देह करता है , तो करने देना, क्योंकि… श़क… सदा सोने की शुद्धता पर किया जाता है, कोयले की

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शुभोपयोग

शुभोपयोग संयम के साथ तो शुद्धोपयोग में कारण, असंयम के साथ सम्यग्दर्शन में कारण । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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ज्ञान

टार्च तभी प्रयोग में लेते हैं जब जरूरत हो, बाकि समय बंद कर देते हैं । ज्ञान बाह्य वस्तुओं को जानने/देखने के लिये नहीं, शांत

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मंगल आशीष

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