Month: March 2020
राग-द्वेष
राग-द्वेष तो हाड़-मांस से भी बुरा होता है । हाड़-मांस के साथ तो केवल-ज्ञान होता है पर राग-द्वेष के साथ असंभव । मुनि श्री निर्दोषसागर जी
“ना” कहना
“ना” कहना भी एक कला है, इसको सकारात्मक तरीके से ही कहना चाहिये ।
शांतिधारा
शांतिधारा तभी पढ़नी चाहिये जब भगवान पर जलधारा पड़ रही हो, अन्यथा पढ़ने का वैसा ही असर होगा जैसे पत्थर कटिंग, बिना जलधारा के ब्लेड़
निमित्त / नैमित्तिक
निमित्त से तो हम बच नहीं सकते, पर नैमित्तिक से बच सकते हैं । (नैमित्तिक = निमित्त का प्रभाव) मुनि श्री प्रमाणसागर जी
देवताओं द्वारा निर्माण
देवता विक्रिया से अस्थायी मंदिरादि तो बना सकते हैं, स्थायी नहीं । मुनि श्री सुधासागर जी
धर्म
धर्म… क्रिया नहीं, प्रयोग है । सिर्फ मंदिर के लिये नहीं, हर ज़गह के लिये है ; कुछ समय के लिये नहीं, हर समय के
दाम्पत्य-जीवन
दाम्पत्य-जीवन का दोष — मुनि/आर्यिका नहीं बन पाना । प्रायश्चित — संस्कारित संतान उत्पत्ति । मुनि श्री विनम्रसागर जी
सच्चे गुरु/भक्त
सच्चा गुरु पवित्र नदी है, हालांकि भक्त उसी नदी का जल है, पर लोटे में है, विशालता नहीं, जिसमें नाव नहीं चल सकती (यानि औरों
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