Month: April 2020
धार्मिक क्रियायें
कैसी बिड़म्बना है कि धार्मिक क्रियाओं में भी हम आर्तध्यान करते हैं !! आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
ख्याति
3 प्रकार की – 1. श्वान जैसी – जहाँ जहाँ मालिक जाता है, उसके पीछे पीछे चले । 2. बिल्ली जैसी – कभी साथ, कभी
आस्तिक्य
भगवान की वाणी में कहे तत्वों के स्वरूप से – 1. अन्य नहीं – द्रव्य रूप से कहा 2. अन्य प्रकार नहीं – पर्याय रूप
संम्प्रेषण
आप शिष्यों को अपने से इतनी दूर भेज देते हैं, उनसे संम्प्रेषण कैसे होता है ? बिजली का खंभा कितनी भी दूर हो पर Connection*
केशलोंच – पीड़ा / प्रभावना
पीड़ा को पीड़ा मानो तो पीड़ा महसूस होगी । Adventure की पीड़ा में आनंद आता है, ऐसे ही केशलोंच आदि में तथा निर्जरा भी ।
निद्धत्ति / निकाचित कर्म
चरणानुयोग के अनुसार – देवदर्शन से निद्धत्ति/निकाचित-पना समाप्त हो जाता है । सिद्धांतग्रंथों के अनुसार, इन्हें भोगना ही पड़ता है (जैसे सीता/अंजना जी ने को
आलोचना
आलोचना से लोचन खुलते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी इसलिये आलोचना का स्वागत करो (स्व+आगत)(अच्छे से बुलाना – पं.रतनलाल बैनाडा जी), स्व का हितकारी/प्रिय
अवरोधक
मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद; धार्मिक-क्रियाओं में अवरोधक हैं । लेकिन कषाय और योग के साथ क्रियायें निरंतर की जा सकती हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
सत्ता
राज-सत्ता = दबाब से चलती है, लोक-सत्ता = प्रेम से चलती है, प्रभु-सत्ता = विशुद्धि से चलती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Recent Comments