Month: June 2020
वैराग्य
असंख्यात पंचकल्याणक करने के बाद भी सौधर्म इन्द्र को वैराग्य नहीं होता । क्योंकि वह भी हम लोगों की तरह भोगों में लीन रहता है
स्व-पर कल्याण
जो अपने कल्याण में लगा हुआ है, वह दूसरों का अकल्याण कर ही नहीं सकता । क्योंकि दूसरे के अकल्याण के भाव आने से पहले
नकुल / सहदेव
दोनों सर्वार्थसिद्धि गये और वहाँ जाने के लिये शुक्ल-लेश्या आवश्यक है । पर शुक्ल-लेश्या वाले के लिये ऐसे भाव नहीं हो सकते कि “भाई/बुजुर्ग ऐसी
सुख की चाह
सुख की चाहना में कोई बुराई नहीं है, पर दु:ख की राह पर चलते हुये, सुख की चाह में विसंगति है । ऐसे सुख की
नवदेवता
पूज्य सब, पर प्रथम सात(5 परमेष्ठी,जिनबिंब,जिनागम) द्रव्य से भी पूज्य हैं । 5 प्रत्यक्ष सजीव हैं । जिनालय पर पैर भी रखते हैं । जिनधर्म
क्रोध
यह परिवार के साथ ही आता है – क्रोध की माँ है – कुमति पत्नि – घ्रणा बहनें – ईर्षा और चुगली भाई – कपट
आहार देने की पात्रता
दिगम्बरत्व को गुरु मानने पर पात्रता होती है, वरना भोजन तो माँगने वालों को भी दिया जाता है । नवधा भक्ति गुरु मानने की स्वीकृति
पताका
पताका – जो पता बताये (मंदिर/घर का) । घरों में भी लगायें ताकि अला-बला टलती रहे ।
सम्यग्दृष्टि की क्रियायें
समंतभद्र स्वामी बीमारी में राजा शिवकोटि के पास क्यों गये, अपने घर भी तो जा सकते थे ? सम्यग्दृष्टि शरीर से गिरता भी है तो
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